जैव-अपशिष्ट प्रबंधन पर कार्यशाला
भा.कृ.अनु.प.- कें.उ.बा.सं., लखनऊ में दिनांक 20.09.2018 को बागवानी अपशिष्ट प्रबंधन पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान एवं भा. कृ. अनु. प.- राष्ट्रीय कृषि मतस्य अनुसन्धान ब्यूरो के वैज्ञानिकों ने भाग लिया। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य विभिन्न तरीकों द्वारा बागवानी, मंडियों, किसानों के खेतों और प्रसंस्करण कारखानों से प्राप्त अवशेष को मूल्यवर्धित उत्पादों में कैसे परिवर्तित किया जा सके, चर्चा करना था। इस अवसर पर श्रीमती नीलिमा गर्ग, विभागाध्यक्ष, फसल तुड़ाई उपरांत प्रबंधन ने "सूक्ष्मजीवो के प्रयोग द्वारा बागवानी अपशिष्ट का प्रबंधन" विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि कचरो में उपस्थित कार्बनिक घटक जैसे सेलूलोज़, स्टार्च, पेक्टिन, विटामिन, खनिजों आदि की प्रचुरता होती है और वर्तमान में बागवानी अवशेषों और प्रसंस्करण द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट के कुशल प्रबंधन के लिए कोई उचित प्रबंधन प्रणाली उपलब्ध नहीं है। इसको प्रबंधन करने का एक तरीका यह भी है कि इस अपशिष्ट को सूक्ष्मजीवो के प्रयोग द्वारा उपयोगी चीजे जैसे कि आहार संबंधी फाइबर, इथेनॉल, टार्ट्रेट्स, रंगद्रव्य, बीज तेल और प्रोटीन, खाद्य, फ़ीड, कार्यात्मक खाद्य पदार्थ, कॉस्मेटिक उत्पाद, वर्मीकंपोस्ट इत्यादि जैसे मूल्यवर्धित पदार्थो का उत्पादन कर सकते है। इस तरह कचरे के उपयोग से न केवल आवश्यक उत्पाद तैयार होंगे बल्कि प्रदूषण स्तर भी कम होगा। डा० राम अवध राम, प्रधान वैज्ञानिक ने "भारत में फसल और नगरपालिका से प्राप्त अपशिष्ट प्रबंधन के समाधान" पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष किसानो के लिए बहुत उपयोगी हो सकते है । इन अवशेषों को ग्रामीण घरेलू उपयोग के लिए जैसे कि ईंधन, खाद, पशुओ के चारे के आदि के रूप में उपयोग करते है। हालांकि, इन अवशेषों का एक बड़ा हिस्सा फसल तुड़ाई उपरांत मैदान में जला दिया जाता है।
ICAR-Central Institute of Subtropical Horticulture organised a workshop on horticulture waste management which was attended by its scientists and those of National Bureau for Fish Genetic Resources, Lucknow on 20.9.2018 with an objective to brainstorm on different ways by which the horticulture produce residue from mandis, households, farmers’ fields and processing factories can be converted into value-added products. Dr. Neelima Garg, head, Division of Postharvest Management delivered a talk on ‘Horticultural waste management by microbial interventions’. She emphasised that these wastes were very rich in organic constituents like cellulose, starch, pectin, vitamins, minerals etc and posed serious health hazards due to high biological oxygen demand (BOD) and led to environmental pollution. Presently there is no appropriate waste management system for the efficient management of huge waste generated by horticultural residues and processing waste. One way of managing the situation is to reduce the losses and to utilise the available material for producing value-added products such as dietary fibre, ethanol, tartarates, pigments, seed oil and protein, food, feed, functional foods, cosmetic products, vermin-compost etc. through microbial interventions and fermentation. The utilisation of wastes will not only economise the cost of finished products but also reduce the pollution level. Similarly, Crop residues are natural resources with tremendous value to farmers. These residues are used as animal feed, composting, thatching for rural homes and fuel for domestic and industrial use. Dr. Ram Avadh Ram, Pr. Scientist also delivered a talk on ‘Viable solutions to crop and municipal solid waste management in India’ on this occasion. He said that crop residues were natural resources with tremendous value to the farmers. However, a large portion of these residues is burned in field after the harvest of the crop.