दिनांक 27 अगस्त 2024 भा.कृ.अनु.प.-केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, रहमानखेड़ा, लखनऊ के फार्मर फर्स्ट परियोजना अंतर्गत माल-मलिहाबाद प्रखंड के गाँव ढकवां में आम के मध्यम उम्र के बागों में संस्थान द्वारा सेंटर ओपेनिंग और हल्की काट छांट का प्रदर्शन किया गया । इस अवसर पर परियोजना के मुख्य अन्वेषक डॉ. मनीष मिश्र ने बताया की जो बागवान पहले से ही अपने बागों की उचित काट-छांट करते हैं, उनके बाग जंगल का रूप नहीं लेते हैं और लम्बे समय तक अच्छी फलत देते रहते हैं। संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. सुशील कुमार शुक्ल ने किसानों के समक्ष सेंटर ओपेनिंग तकनी का प्रदर्शन किया और इसके बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताय कि मलिहा बाद क्षेत्र में आम के बाग धीरे धीरे जंगल का रूप ले रहे हैं। पुराने समय में आम के बागों में किसी तरह की काट-छांट अनावश्यक समझी जाती थी लेकिन गत वर्षों के शोध में यह पाया गया कि अगर हम आम के बागों में समय समय पर थोडी काट छांट करते रहें, तो आम के वृक्षों की न केवल उत्पादकता और फलों की गुणवत्ता अच्छी रहती है बल्कि हमारे वृक्ष जंगल का रूप भी नहीं लेंगे । आम के मध्यम उम्र के (15 से 30 वर्ष) के वीच के बागों में सेंटर ओपेनिंग एवम हल्की पार्श्व कटाई-छंटाई कर के सफलता पूर्वक छत्र प्रबंधन किया जा सकता है। इस तरह की काट-छांट का उचित समय वर्षा ऋतु के बाद से दिसम्बर महीने तक है। इस में हम वृक्ष की बीचोबीच स्थित ऐसी शाखा जो कि सीधी ऊपर की ओर बढ़ रही हो और वृक्ष की ऊंचाई के लिये जिम्मेदार हो, को उसके उत्पत्ति के स्थान से निकाल देते हैं। इसके बाद छत्र के मध्य में स्थित एक या दो शाखायें या उनके वृक्ष के केंद्र में स्थित कुछ अंश का विरलन कर इस प्रकार से निकालते हैं कि वृक्ष के छ्त्र के मध्य में पर्याप्त रोशनी आ सके। साथ ही साथ बगल के पेड़ से स्पर्श करने वाली शाखओं की हल्की काट-छांट इस प्रकार से करते हैं कि वे बगल में उग रहे वृक्ष के सम्पर्क में न आयें। इस काट छंट से से 15-20 प्रतिशत तक पेंड़ों की ऊंचाई में कमी आ जाती, है जिससे दवा के छिड़काव, फलों की तुड़ाई आदि में मदद मिलती है। वृक्ष के अंदर तक प्रकाश की उपलब्धता से नये कल्ले आते हैं और फलों की गुणवत्ता बढ़ जाती है। आम के भुनगा, थ्रिप्स आदि कीटों को पेड़ के अंदर उचित वातावरण न मिलने से उनका प्रकोप कम होता है। इस कार्यक्रम में गांव के 50 किसानों ने भाग लिया कार्यक्रम का समन्वयन परियोजना कर्मी श्री रोहित जायसवाल द्वारा किया गया ।