उत्तर प्रदेश से आम के निर्यात बढ़ाने और उच्च गुणवत्ता के आम उत्पादन में आदर्श कृषि पद्धतियों के महत्व को समझते हुए संस्थान द्वारा आज दिनांक 04.09.2023 को एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में प्रदेश के प्रमुख आम उत्पादक जनपदों (सहारनपुर, बिजनौर, मेरठ, अमरोहा, कासगंज, लखनऊ, सीतापुर, बाराबंकी, रायबरेली, अमेठी और बनारस) के 23 उन्नतशील बागवानों ने सहभागिता की। कार्यक्रम के प्रारंभ में संस्थान के निदेशक डा. टी. दामोदरन सभी सहभागियों का स्वागत करते हुए आदर्श कृषि पद्धतियों को अपनाकर निर्यात योग्य गुणवत्ता के आम उत्पादन की आवश्यकता पर बल दिया। डा. दामोदरन ने इस कार्यशाला के दौरान अपने अनुभवों को संस्थान को प्रेषित करने और संस्थान की तकनीकी को समझने का आग्रह किया। डा. पी. के. शुक्ल, प्रधान वैज्ञानिक ने किसानों को बताया कि प्रारंभिक सत्र में पश्चिमी, पूर्वी और केन्द्रीय उत्तर प्रदेश के किसान तीन अलग-अलग समूह में वैज्ञानिकों से चर्चा करेंगे। तदोपरांत सामूहिक सत्र में प्रथम सत्र की चर्चा के परिणामों के आधार पर उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में आदर्श कृषि पद्धतियों के विषय में निर्णय किये जायेंगे। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि माननीय डा. वी. बी. पटेल, सहायक महानिदेशक (बागवानी विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने आदर्श कृषि पद्धतियों पर किसानों के साथ कार्यशाला के आयोजन को एक सराहनीय कदम बताया। मुख्य अतिथि ने विगत में प्रकाशित आदर्श कृषि पद्धतियों के आलेख और इस कार्यशाला में किये गये निर्णयों के बीच सामंजस्य बैठाते हुए नवीन प्रकाशन करने की आवश्यकता बताई। डा. पटेल ने किसानों को बताया कि निर्यात हेतु आपको न सिर्फ आदर्श कृषि पद्धतियों को अपनाना है बल्कि वर्ष भर बागों में किये गये कार्यों का लेखा-जोखा भी रखना है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन और बाजार की मांग को ध्यान में रखकर कार्य करने की सलाह दी। किसानों के साथ परिचर्चा में बागों में जुताई, एकांतर फलन से बचाव हेतु कल्टार का प्रयोग, सिंचाई, कम्पोस्ट एवं उर्वरकों का प्रयोग, कीट एवं व्याधि प्रबंधन, फलों की तुड़ाई विधि, डिब्बाबंदी और विपणन आदि विषयों पर मंथन किया गया। किसानों द्वारा वर्तमान में अपनायी गयी बागवानी पद्धतियों पर उनके बताये अनुसार अभिलेख तैयार किये गये। कार्यक्रम के पूर्ण अधिवेशन में तीनों समूहों द्वारा अपनायी जा रही कृषि पद्धतियों के विषय में समूह के अध्यक्षों डा. एच. एस. सिंह, डा. एस. के शुक्ल और डा. मनीष मिश्रा द्वारा समूह चर्चा के प्रमुख बिन्दुओं को सदन में प्रस्तुत किया। पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जलवायु की भिन्नता के कारण कृषि पद्धतियों में भी भिन्नता पायी गयी। यह भी पाया गया कि संस्थान की अधिकांश संस्तुतियां किसानों द्वारा अपनायी जा रही हैं। बागवानों विशेषकर ठेकेदारों द्वारा कल्टार/पैक्लोब्यूट्राजाल के अंधाधुंध प्रयोग की समस्या पर भी चर्चा की गई। बागवानों द्वारा स्वीकार किया गया कि वह फसल को रोग एवं कीटों से बचाने हेतु रसायनों का अत्यधिक प्रयोग कर रहे हैं, साथ ही सिंचाई जल के बचाव की दिशा में भी ध्यान नहीं दिया गया है। संस्थान के निदेशक डा. दामोदरन ने किसानों से रसायनों के उपयोग में कमी लाने हेतु जैव उत्पादों के प्रयोग एवं सिंचाई जल के बचाव के लिए नवीन सिंचाई पद्धतियों को अपनाने का आग्रह किया। डा. दामोदरन ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए किसानों से अभी से अगली तुड़ाई के दौरान आदर्श कृषि पद्धतियों को अपनाने और कम से कम एक टन उच्च गुणवत्ता के फल निर्यात हेतु उपलब्ध कराने का आग्रह किया। इस कार्यक्रम के दौरन किसानों के आम निर्यातक श्री के. एस. रवि, एम.डी., मोवा फूड पार्ट, बैंगलोर से आॅनलाईन सीधा विचार-विमर्श भी कराया गया। जिससे किसान उनके सीधे संपर्क में रहकर अगले मौसम में निर्यात कर सकें। श्री रवि ने किसानों को निर्यात हेतु आम उत्पादन में आवश्यक सावधानियों के विषय में विस्तार से बताया। समापन सत्र में डा. पी. के. शुक्ल द्वारा संस्थान द्वारा आदर्श आम उत्पादन हेतु की गयी संस्तुतियों पर संक्षेप में विवरण प्रस्तुत किया। डा. शुक्ल ने किसानों को आगाह किया कि आम उत्पादन में अनावश्यक व्यय से बचते हुए उत्पादन लागत को कम करें और रोगों-कीटों के प्रकोप की महत्वपूर्ण अवस्थाओं के आने से पहले ही समुचित प्रबंधन करें। उत्पादित फलों को रसायन अवशेष मुक्त रखने के लिए फलों की थैलाबंदी करें और तुड़ाई से कम से कम एक माह पूर्व तक किसी भी रसायन का छिड़काव न करें।